डांग के आहवा तालुका के कोटबा गांव में गांव के लोगो द्वारा डूंगरदेव उत्सव आयोजित किया गया।

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डांग के आहवा तालुका के कोटबा गांव में गांव के लोगो द्वारा डूंगरदेव उत्सव आयोजित किया गया।

डांग (गुजरात): २१/२३: डांग के आहवा तालुका के कोटबा गांव में कल ग्रामीणों द्वारा आयोजित सामूहिक डूंगरदेव उत्सव की एक झलक देखने को मिली,जो आज भी अपने कुल देवताओ की प्राचीन पारंपरिक संस्कृति को कायम रखते हैं डांग जिले में आदिवासियों के कुल देवता डूंगरदेव हैं,जो वर्तमान में पूरे डांग जिले में आदिवासियों द्वारा मनाया जाता है, जिसमें कुल देवता के रूप में पहाड़ी माता जिन्हें डांगी बोली में माता मावुली कहा जाता है,गाँव या व्यक्तिगत परिवारों द्वारा भी पूजा की जाती है।और इस पूजा के दौरान पूजा की विधि जानने वाले भगतो (पुजारी) द्वारा पूरी रात स्थानीय डूंगरदेव की पूजा की जाती है और थाली और पावरीवादन के सुर और ड्रमके साथ थाली और पावरी ड्रम की ध्वनि पर नृत्य किया जाता है,जब की लोगों के अनुसार कुछ भक्त के शरीरमें माताजी याने देवी देवताओ की शक्ति शरीर में प्रवेश करते हैं।जिस जिस भक्त के शरीर में ये शक्ति आती है वो धुनने लगते है।डूंगरदेव के पूजा उत्सव के दौरान पूरी रात सारे भक्त सिर्फ़ पुरुष ही नाचगान करके बाद दुसरे दीन सुबह उठते हैं और दिन भर दूसरे गांवों में घर-घर जाकर डूंगरदेव का नाम जपते हैं और अन्न दान मांगते हैं और शाम को उसी स्थान पर लौट आते हैं जहां डूंगरदेव का उत्सव मनाया जाता है।इस प्रकार, दो या तीन दिनों तक यह उत्सव आयोजित करने के बाद, आखिरी दिन, जब यह उत्सवजिस माताजी मावुंली के नाम पर आयोजित किया गया हो वह। डूंगरदेव पहाड़ी किले पर जाकर वहां मुर्गियां और बकरे को चढ़ावे के लिए अर्चित करके पूरी रात वहीं रहने के बाद वापस घर आ आकर , और फिर देवी माता को अर्चित चढ़ाए गए बकरे या मुर्गे की बलि दी जाती है।और उसी दिन से यहां डूंगरदेव का उत्सव पूरा होता है।

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